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Monday, March 30, 2015

आखिर पाया तो क्या पाया?


हिन्दी साहित्य में, हरिशंकर परसाई जी व्यंग्य लेखन के लिए जाने जाते हैं। उनकी लिखी हुयी कवितायें कम ही लोगो ने पढ़ी होगीं। प्रस्तुत है उनकी एक सशक्त कविता;

मैं सोच रहा, सिर पर अपार
दिन, मास, वर्ष का धरे भार
पल, प्रतिपल का अंबार लगा
आखिर पाया तो क्या पाया?

जब तान छिड़ी, मैं बोल उठा
जब थाप पड़ी, पग डोल उठा
औरों के स्वर में स्वर भर कर
अब तक गाया तो क्या गाया?

सब लुटा विश्व को रंक हुआ
रीता तब मेरा अंक हुआ
दाता से फिर याचक बनकर
कण-कण पाया तो क्या पाया?

जिस ओर उठी अंगुली जग की
उस ओर मुड़ी गति भी पग की
जग के अंचल से बंधा हुआ
खिंचता आया तो क्या आया?

जो वर्तमान ने उगल दिया
उसको भविष्य ने निगल लिया
है ज्ञान, सत्य ही श्रेष्ठ किंतु
जूठन खाया तो क्या खाया?

~ हरिशंकर परसाई

   Jan 30, 2013| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh


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