
खाते-पीते, दहशत जीते
घुटते-पिटते बीच के लोग।
वर्ग-धर्म पटकनी लगाता,
माहुर माते बीच के लोग।
घर में घर की तंगी-मंगी,
भ्रम में भटके बीच के लोग।
लोभ-लाभ की माया लादे,
झटके खाते बीच के लोग।
घना समस्याओं का जंगल,
कीर्तन गाते बीच के लोग।
नीचे श्रमिक, विलासी ऊपर,
बीच में लटके बीच के लोग।
~ मन्नूलाल द्विवेदी 'शील'
Feb 7, 2013| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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