
गये दिनों की याद-सा वो फिर कहीं से आ गया
खफा खफा-आया था खफा खफा चला गया
बुझा बुझा मिला मगर चिराग इक जला गया
गई रूतों का वो मुझे भी आईना दिखा गया
इक आखिरी चिराग रहगुजारे-इन्तजार का
न जाने जी में आई क्या कि उसको भी बुझा गया
मैं तेरी एक एक बात याद कर के रो पड़ा
तू एक एक कर के अपनी बातें भूलता गया
उठाये बोझ उम्र का खड़ा हूं हांफता हुआ
नगर नगर में कौन था जो रास्ते बिछा गया
सलीबे-सुब्ह चूमती है कसमसाती कोंपलें
चमन के गोशे-गोशे में उदासियां उगा गया
रूकी रूकी-बारिशों के बोझ से दबीं दबीं
झुकी झुकी-सी टहनियों को आज फिर हिला गया
उदास उदास रास्तों पे शाम की खामोशियां
किसी का हाथ छू गया तिरा खयाल आ गया
~ शीन काफ़ निज़ाम
Feb 24, 2013| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment