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Monday, March 30, 2015

खैंची लबों ने आह कि..!



खैंची लबों ने आह कि सीने पे आया हाथ ।
बस पर सवार दूर से उसने हिलाया हाथ ।

महफ़िल में यूँ भी बारहा, उसने मिलाया हाथ ।
लहजा था ना-शनास मगर मुस्कुराया हाथ ।
*ना-शनास=अपरिचित

फूलों में उसकी साँस की आहट सुनाई दी,
बादे सबा ने चुपके से आकर दबाया हाथ ।
*बादे सबा=सुबह की ख़ुशबूदार हवा

यूं ज़िन्दगी से मेरे मरासिम हैं आज कल,
हाथों में जैसे थाम ले कोई पराया हाथ ।
*मरासिम=ताल्लुकात

मैं था ख़मोश जब तो ज़बाँ सबके पास थी,
अब सब हैं लाजवाब तो मैंने उठाया हाथ ।

~ 'अना' क़ासमी


   Mar 5, 2013| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

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