
फूल की मनुहार
बिन छेड़े जी खोल सुगन्धों को जग में बिखरा दूँगा
उषा-राग पर दे पराग की भेंट रागिनी गा दूँगा
छेड़ोगे तो पत्ती-पत्ती चरणों पर बिखरा दूँगा
संचित जीवन साध कलंकित न हो कि उसे लुटा दूँगा
किन्तु मसल कर सखे! क्रूरता--
की कटुता तू मत जतला
मेरे पन को दफना कर
अपनापन तू मुझ पर मत ला।
~ माखनलाल चतुर्वेदी
Dec 15, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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