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Tuesday, March 31, 2015

फूल की मनुहार



 फूल की मनुहार

बिन छेड़े जी खोल सुगन्धों को जग में बिखरा दूँगा
उषा-राग पर दे पराग की भेंट रागिनी गा दूँगा
छेड़ोगे तो पत्ती-पत्ती चरणों पर बिखरा दूँगा
संचित जीवन साध कलंकित न हो कि उसे लुटा दूँगा

किन्तु मसल कर सखे! क्रूरता--
की कटुता तू मत जतला
मेरे पन को दफना कर
अपनापन तू मुझ पर मत ला।

~ माखनलाल चतुर्वेदी


   Dec 15, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

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