
दायम पड़ा हुआ तेरे दर पर नहीं हूँ मैं
ख़ाक ऎसी ज़िंदगी पे, के पत्थर नहीं हूँ मैं
* दायम=हमेशा, दर=द्वार, ख़ाक=धूल, राख़
क्यूं गर्दिश-ए-मुदाम से घबरा न जाए दिल
इंसान हूँ, प्याला-ओ-सागर नहीं हूँ मैं
* गर्दिश-ए-मुदाम=लगातार बुरा वक़्त, प्याला-ओ-सागर=शराब का प्याला
यारब! ज़माना मुझ को मिटाता है किस लिए
लौह-ए-जहां पे हर्फ़-ए-मुक़र्रर नहीं हूँ मैं
* यारब=ऐ ख़ुदा!, लौह-ए-जहां=इतिहास की तख्ती, हर्फ़-ए-मुक़र्रर=बार बार दोहराया गया शब्द
हद चाहिए सज़ा में उक़ूबत के वास्ते
आखिर गुनाहगार हूँ काफिर नहीं हूँ मैं
* हद=सीमा, उक़ूबत=दर्द, प्रतारण, काफि=ख़ुदा मे न मानने वाला
किस वास्ते अज़ीज़ नहीं जानते मुझे
लाल-ओ-ज़ुमुर्रुद-ओ-जर-ओ-गौह
* अज़ीज़=प्रिय, लाल=रूबी, ज़ुमुर्रुद=एमराल्ड, जर=स्वर्ण, सोना, गौह=मोती
रखते हो तुम क़दम मेरी आँखों से क्यूँ दरेघ
रुतबे में हर-ओ-माह से कम-तर नहीं हूँ मैं
* दरेघ रखना=कम इज्ज़त देना, महर-ओ-माह=चाँद और सूरज, कम-तर=छोटा, ओहदे में नीचे
करते हो मुझको मना-ए-क़दम-बोस किस लिए
क्या आसमान के भी बराबर नहीं हूँ मैं
* मना=इंकार करना, क़दम-बोस=पैरों (या पद-चिन्ह) को चूमना
ग़ालिब वजीफा-ख्वार हो, दो शाह को दुआ
वो दिन गए कि कहते थे नौकर नहीं हूँ मैं
* वजीफा-ख्वार=जिसको बंधी हुयी महवारी तंख्वाह मिल रही हो, शाह=(मुग़ल) बादशाह, दुआ=प्रार्थना
~ मिर्ज़ा 'ग़ालिब'
Feb 16, 2013| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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