झुकी पीठ को मिला
किसी हथेली का स्पर्श
तन गई रीढ़
महसूस हुई कंधों को
पीछे से,
किसी नाक की सहज उष्ण निराकुल साँसें
तन गई रीढ़
कौंधी कहीं चितवन
रँग गए कहीं किसी के होंठ
निगाहों के ज़रिए जादू घुसा अंदर
तन गई रीढ़
गूँजी कहीं खिलखिलाहट
टूक-टूक होकर छितराया सन्नाटा
भर गए कर्णकुहर
तन गई रीढ़
आगे से आया
अलकों के तैलाक्त परिमल का झोंका
रग-रग में दौड़ गई बिजली
तन गई रीढ़
~ नागार्जुन
Mar 12, 2015 | e-kavya.blogspot.com
Ashok Singh
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