मैं सुलगते हुए राज़ों को अयाँ तो कर दूं,
लेकिन इन राज़ों की तशहीर से जी डरता हैं।
रात के ख़्वाब उजाले में बयाँ तो कर दूं,
इन हसीं ख़्वाबों की ताबीर से जी डरता हैं।
Ashok Singh
लेकिन इन राज़ों की तशहीर से जी डरता हैं।
रात के ख़्वाब उजाले में बयाँ तो कर दूं,
इन हसीं ख़्वाबों की ताबीर से जी डरता हैं।
*अयाँ=ज़ाहिर; तशहीर=किसी की कमियों का खुलासा करना; ताबीर=परिणाम
~ साहिर लुधियानवी
Mar 06, 2015 | e-kavya.blogspot.com~ साहिर लुधियानवी
Ashok Singh
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