
रुठते हैं एक-दो तो रूठ जाएँ
स्वप्नदर्शी के कई आकाश होते हैं
एक सपने को रहूँ सीने लगाए
अब कहाँ इतना समय है पास मेरे
तुम जिसे अब तक सुबह समझे हुए हो
बेच आया मैं कई ऐसे सवेरे
एक घटना से नहीं बनती कहानी
हर कहानी में कई इतिहास होते हैं
बीच में दीवार जो मेरे-तुम्हारे
मैं इसे भी एक रिश्ता मानता हूँ
ज़िन्दगी का हर मुक़द्दमा लड़ चुका हूँ
मैं उसे हर रूप में पहचानता हूँ
सुख बहुत, पर आम लोगों के लिए हैं
दर्द के बेटे मगर कुछ ख़ास होते हैं
डाल जिस पर मौत अण्डे दे रही है
सोच लोगे तो इसे तुम तोड़ दोगे
जो दिशाएँ कह रहीं हम तो अडिग हैं
एक दिन इनके मुखौटे मोड़ दोगे
तृप्ति का क्या, मैं उन्हीं को खोजता हूँ
झील ऊपर किन्तु भीतर प्यास होते हैं
~ राम अवतार त्यागी
Mar 6, 2013| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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