जिस सिम्त नज़र भर देखे हैं उस दिलबर की फुलवारी है
कहीं सब्ज़ी की हरियाली है, कहीं फूलों की गुलकारी है
दिन-रात मगन ख़ुश बैठे हैं और आस उसी की भारी है
बस आप ही वह दातारी हैं और आप ही वह भंडारी हैं
हर आन हँसी, हर आन ख़ुशी हर वक़्त अमीरी है बाबा
जब आशिक़ मस्त फ़क़ीर हुए फिर क्या दिलगीरी है बाबा ।
Ashok Singh
कहीं सब्ज़ी की हरियाली है, कहीं फूलों की गुलकारी है
दिन-रात मगन ख़ुश बैठे हैं और आस उसी की भारी है
बस आप ही वह दातारी हैं और आप ही वह भंडारी हैं
हर आन हँसी, हर आन ख़ुशी हर वक़्त अमीरी है बाबा
जब आशिक़ मस्त फ़क़ीर हुए फिर क्या दिलगीरी है बाबा ।
*सिम्त=तरफ; दातारी=देने वाले
~ नज़ीर अकबराबादी
March 17, 2015 | e-kavya.blogspot.com~ नज़ीर अकबराबादी
Ashok Singh
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