
बादलों से काट काट के, कागजों पे नाम जोड़ना
ये मुझे क्या हो गया?
डोरियों से बाँध बाँध के, रात भर चाँद तोड़ना,
ये मुझे क्या हो गया?
एक बार तुम को जब बरसते पानिओं के पार देखा था
यूँ लगा था जैसे गुनगुनाता एक आबशार देखा था
तब से तुम मेरी नींदों में बरसती रहती हो
बोलती बहुत हो, और हँसती रहती हो।
जो तुझे जानता न हो, उस से तेरा नाम पूछना,
ये मुझे क्या हो गया?
*आबशार=झरना
देखो यूँ खुले बदन तुम गुलाबी साहिलों पे आया न करो
नमक भरे समन्दरों में इस तरह नहाया न करो
सारा दिन चाँदनी सी छाई रहती हैं
और गुलाबी धूंप बौखलाई रहती हैं
जामुनों की नर्म डाल पे, नाखूनों से नाम खोदना,
ये मुझे क्या हो गया?
~ गुलज़ार
Mar 8, 2013| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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