
आ, स्वतंत्र प्यारे स्वदेश आ,
स्वागत करती हूं तेरा
तुझे देखकर आज हो रहा,
दूना प्रमुदित मन मेरा
आ, उस बालक के समान,
जो है गुरुता का अधिकारी
आ, उस युवक-वीर सा जिसको,
विपदाएं ही हैं प्यारी
आ, उस सेवक के समान तू,
विनय-शील अनुगामी सा
अथवा आ तू युद्ध-क्षेत्र में,
कीर्ति-ध्वजा का स्वामी सा
आशा की सूखी लतिकाएं,
तुझको पा, फिर लहराईं
अत्याचारी की कृतियों को,
निर्भयता से दरसाईं
~ सुभद्राकुमारी चौहान
September 30, 2014
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