कोई मुसाफ़त खत्म हुई है कोई मुसाफ़त बाकी है
*शौके-सियाह्त=यात्रा की इच्छा; मुसाफ़त=दूरी
ऐसे बहुत से रस्ते हैं जो रोज़ पुकारा करते हैं
कई मनाज़िल सर करने की अब तक चाहत बाकी है
*मनाज़िल=मंज़िल का बहुवचन, बहुत सारी मंज़िलें; सर=जीतना
एक सितारा हाथ पकड़ कर दूर कहीं ले जाता है
रोज़ गगन में खो जाने की अब तक आदत बाकी है
चश्मे-बसीरत कुछ तो बता दे कब वो लम्हे आयेंगे
जिन की खातिर इन आँखों में इतनी बसारत बाकी है
*चश्मे-बसीरत=ज्ञानचक्षु; बसारत=देखने की शक्ति
ख़त्म कहानी हो जाती तो नींद मुझे भी आ जाती
कोई फ़साना भूल गया हूँ कोई हिकायत बाकी है
*फ़साना=मन गढ़न्त किस्सा; हिकायत=कहानी
दुनिया के ग़म फ़ुर्सत दें तो दिल के तक़ाज़े पूरे हों
कूचा-ए-जानां! तेरी भी तो सैर-ओ-सियाहत बाकी है
*कूचा-ए-जानां=प्रेमिका की गली; सियाहत=यात्रा
शहरे-तमन्ना! बाज़ आया मैं तेरे नाज़ उठाने से
एक शिकायत दूर करूँ तो एक शिकायत बाक़ी है
*शहरे-तमन्ना=ख़्वाहिश रखने वालों की बस्ती
एक जरा सी उम्र में 'आलम ' कहाँ कहाँ की सैर करूँ
जाने मेरे हिस्से में अब कितनी मुहलत बाकी है
*मुहलत=फ़ुर्सत
~ आलम खुर्शीद
Oct. 13, 2014
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