मैं नज़र से पी रहा हूँ ये समाँ बदल न जाये
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये
मेरे अश्क भी हैं इसमें ये शराब उबल न जाये
मेरा जाम छूने वाले तेरा हाथ जल न जाये
अभी रात कुछ है बाकी न उठा नक़ाब साक़ी
तेरा रिंद गिरते-गिरते कहीं फिर सम्भल न जाये
मेरी ज़िंदगी के मालिक मेरे दिल पे हाथ रखना
तेरे आने की ख़ुशी में मेरा दम निकल न जाये
मुझे फूँकने से पहले मेरा दिल निकाल लेना
ये किसी की है अमानत कहीं साथ जल न जाये
इसी ख़ौफ़ से नशेमन मैं बना सका न 'अनवर'
कि निगाह-ए-अहल-ए-गुलशन कहीं फिर बदल न जाये
~ अनवर मिर्ज़ापुरी
Nov 19, 2013
No comments:
Post a Comment